श्री केशवानंद भारती जी


 👉श्री केशवानंद भारती (९ दिसंबर १ ९ ४० - ६ सितंबर २०१०) भारतीय राज्य केरल के कासरगोड जिले में एडनेयर मठ के प्रमुख पोंटिफ़ थे ।👈


✍️ वह एक ऐतिहासिक मामले के याचिकाकर्ता थे जिन्होंने भारतीय संविधान के मूल संरचना सिद्धांत को स्थापित करने में मदद की जो इस बात की गारंटी देता है कि संसदीय संशोधन द्वारा भारतीय संविधान के मूलभूत या  बुनियादी ढांचे ’को बदला नहीं जा सकता है । 


✍️ वे स्मार्ट भागवत परंपरा और अद्वैत वेदांत के अनुयायी थे 


नाम :- श्री केशवानंद भारती

जन्म :- 9 दिसंबर 1940

मृत्यु :- 6 सितंबर 2020 (आयु 79 वर्ष)

                   (मैंगलोर , भारत)

धर्म :-हिन्दू 

धर्म संप्रदाय :- एडनेटर मठ , कासरगोड जिला , केरल, भारत

दर्शन:- अद्वैत वेदांत

धार्मिक कैरियर:- गुरुश्री ईश्वरानंद भारती स्वामीजी

संविधान के 'मूल संरचना सिद्धांत' को निर्धारित करने वाले ऐतिहासिक फ़ैसले के प्रमुख याचिकाकर्ता रहे केशवानंद भारती का निधन हो गया है. वे 79 वर्ष के थे.

उन्होंने रविवार सुबह केरल के उत्तरी ज़िले कासरगोड में स्थित इडनीर के अपने आश्रम में अंतिम साँस ली.

केशवानंद भारती का नाम भारत के इतिहास में दर्ज रहेगा. 47 साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने 'केशवानंद भारती बनाम स्टेट ऑफ़ केरल' मामले में एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाया था जिसके अनुसार 'संविधान की प्रस्तावना के मूल ढांचे को बदला नहीं जा सकता.'

इस फ़ैसले के कारण उन्हें 'संविधान का रक्षक' भी कहा जाता था.

मिसाल बना ये मामला

दरअसल, केरल में इडनीर नाम का एक हिन्दू मठ है. केशवानंद भारती इसी मठ के प्रमुख थे.


इडनीर मठ केरल सरकार के भूमि-सुधार क़ानूनों को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट गया था.


दरअसल इस क़ानून के तहत मठ की 400 एकड़ में से 300 एकड़ ज़मीन पट्टे पर खेती करने वाले लोगों को दे दी गई थी.

उन्होंने 29वें संविधान संशोधन को भी चुनौती दी थी जिसमें संविधान की नौवीं अनुसूची में केरल भूमि सुधार अधिनियम, 1963 शामिल था.


इसकी वजह से इस क़ानून को चुनौती नहीं दी जा सकती थी क्योंकि इससे संवैधानिक अधिकारों का हनन होता.


भट कहते हैं कि "भूमि सुधार क़ानून के ज़रिए धार्मिक संस्थानों के (संविधान के अनुच्छेद-25 के तहत दिये गए) अधिकार छीन लिए गए थे."


लेकिन स्वामी जी, जिन्हें केरल का शंकराचार्य भी कहा जाता है, वे संवैधानिक अधिकारों के मसले को क़ानूनी चुनौती देने वाला चेहरा बने. हालांकि उस मामले में कुछ और भी याचिकाकर्ता थे.


इस मामले के ज़रिए 1973 में सुप्रीम कोर्ट के सामने ये सवाल आया कि क्या संसद को यह अधिकार है कि वो संविधान की मूल प्रस्तावना को बदल सके?

विदेशी अदालतों ने भी ली प्रेरणा

केशवानंद भारती बनाम स्टेट ऑफ़ केरल मामले के ऐतिहासिक फ़ैसले से कई विदेशी संवैधानिक अदालतों ने भी प्रेरणा ली.


कई विदेशी अदालतों ने इस ऐतिहासिक फ़ैसले का हवाला दिया.


लाइव लॉ के मुताबिक़, केशवानंद के फ़ैसले के 16 साल बाद, बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने भी अनवर हुसैन चौधरी बनाम बांग्लादेश में मूल सरंचना सिद्धांत को मान्यता दी ‌थी.


वहीं बेरी एम बोवेन बनाम अटॉर्नी जनरल ऑफ़ बेलीज के मामले में, बेलीज कोर्ट ने मूल संरचना सिद्धांत को अपनाने के लिए केशवानंद केस और आईआर कोएल्हो केस पर भरोसा किया.


केशवानंद केस ने अफ्रीकी महाद्वीप का भी ध्यान आकर्षित किया. केन्या, अफ्रीकी देश युगांडा, अफ्रीकी द्वीप- सेशेल्स के मामलों में भी केशवानंद मामले के ऐतिहासिक फ़ैसले का ज़िक्र कर भरोसा जताया गया.

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